जब भी कहीं सुनती हूँ
आज कल की दोस्ती को ,
एक टीस सी उठती है,
हर तरफ दोस्ती की आड़ में दगा होता हैं |
क्यों हर बार जिन्दगी की आड़ में ,
मौत का सौदा हो रहा होता है ?
किसे कहे?
किसे समझाएं ?
हर पल ,हर कदम
कहीं न कहीं
ये दगा हो रहा होता हैं|
क्यों हर बार
मासूम सी जिन्दगी की आड़ में ,
मौत का भला होता हैं ?
फरिश्तों पे भी विश्वास करने से डरता है,
एक मासूम इंसान का दिल .
क्योकि , कही न कही ,
दोस्त की आड़ में भी ,
कोई दुश्मन छिपा होता है |
-- अनुभूति