मंगलवार, 27 जुलाई 2010

जिन्दगी

एक कविता मेरे पिता आदरणीय श्री रतन चौहान के कविता संग्रह
 '' टहनियों से झांकती किरणें ''

 से 

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हवा में लिपटा धुंआ
हांडी में पकते टमाटर की खुशबू ,
और कुछ बारिश ,
बारिश का भीगापन

बाहर आई काली मिटटी को जी छूना चाहता हैं
नए मकान  की नींव खुद रही है.

लोग ताप रहे हैं,
और कांच के टुकड़े में 
अक्स देखती लड़कियां 
कंघी कर रही हैं

काम पर जाने से पहले
टहनियों से झाँक रही हैं किरणे.

कही ढोल बज रहा है
उठ रहा है स्वर,
गूंजता हुआ,

-- अनुभूति  

द्वारा 

 सादर साधिकार प्रस्तुत .

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

प्रशंसनीय रचना - बधाई

रविंद्र "रवी" ने कहा…

आपके पिता भी कवी है यह पढकर बहुत अच्चा लगा! उनकी रचना भी बहुत अच्छी लगी!

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................