एक कविता मेरे पिता आदरणीय श्री रतन चौहान के कविता संग्रह
'' टहनियों से झांकती किरणें ''
से
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हवा में लिपटा धुंआ
हांडी में पकते टमाटर की खुशबू ,
और कुछ बारिश ,
बारिश का भीगापन
बाहर आई काली मिटटी को जी छूना चाहता हैं
नए मकान की नींव खुद रही है.
लोग ताप रहे हैं,
और कांच के टुकड़े में
अक्स देखती लड़कियां
कंघी कर रही हैं
काम पर जाने से पहले
टहनियों से झाँक रही हैं किरणे.
कही ढोल बज रहा है
उठ रहा है स्वर,
गूंजता हुआ,
-- अनुभूति
द्वारा
सादर साधिकार प्रस्तुत .
2 टिप्पणियां:
प्रशंसनीय रचना - बधाई
आपके पिता भी कवी है यह पढकर बहुत अच्चा लगा! उनकी रचना भी बहुत अच्छी लगी!
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