एक सपना और एक सच
बुनती ही आ रही थी आँखे एक सपना
हां ,एक सपना दुल्हन बनने का .
बनी भी दुल्हन ,पर जिन्दगी और समझोतों की दुल्हन
वो दिन ना मेरी आँखों मै ख़ुशी थी ,ना कोई उमंग
लगता था ,सरिता के प्रवाह मै ये भी एक टापू हैं |
सब कुछ तो जल गया था उसमे ,कही नहीं थी ,
मासूम सी चूडियो की खनक ,ना मेहंदी की खुशबु
सब कुछ होकर भी शून्य था |
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
2 टिप्पणियां:
ऊपर वाले ने अपने कार्यों में किया था कुछ फ़ेर बदल,गल्ती से दे गया वह कस्तूरी हिरन को,शेर को बहादुरी,हाथी को झूमना,आदमी को फ़रेब,और सबसे बडी भूल उससे हुयी जो दे गया भावना का दरिया,उन हसीनाओं को जो खुद तो भावनाओं में बहती है,बहा भी ले जाती है,और बहाने में करती है सहायता.बहुत अच्छा लिखा है,कुछ खट्टा सा कुछ मीठा सा.समधुर अहसास !
चंद शब्दों में गहरी बात कहना कोई आपसे सीखे...बहुत अच्छी रचना...
एक टिप्पणी भेजें