सोमवार, 18 जनवरी 2010

कुछ नहीं पता



हम तुमको चाहे या ना चाहे ये खुद हमको भी पता नहीं
ये सिलसिला क्यों है खुद नहीं पता
तुझमे दुन्दते है खुदा हमको मिलेगा या नहीं हमको नहीं पता
फिर भी बेबस से घूमते है हम तेरा नाम दिल से लगाए क्यों ?
ये खुद भी नहीं पता |
क्यों कर बैठा है दिल ये खता खुद हमको भी नहीं पता ?
तेरी बंदगी मै है जो मजा ,वो खुद तुझको भी नहीं पता ।
श्रद्धा का अर्थ जाना है जीवन से ,साकार रूप पाया तुममे ,
सब कुछ क़हा फिर भी बहुत कुछ क़हा अनकहा ,क्यों?
ये खुद मुझको भी नहीं पता ।
क्या,तलाशता है तुझमे दिल खुद मुझको भी नहीं पता ?
सोचा नहीं था ,ये मोड़ भी आयेगा ,की तुम साथ होंगे तो जी उठेगा फिर मन
खिल उठा है मन का रोम रोम खिली खिली धुप की तरह
तुम चाँद हो या सूरज खुद मुझको भी नहीं पता ?
हां सुनहली धुप हो या ठंडी चांदनी खुद खिल उठी जिन्दगी को भी नहीं पता ?
या सब कुछ सामने है फिर भी मुझको कुछ नहीं पता ?
की क्या है ये ?
सजा या खता ?







कोई टिप्पणी नहीं:

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................