सोमवार, 16 जनवरी 2012

मेरे माधव !
तेरे असीम स्नेह का आनंद
बहे मेरी इन अखियन से ,
किसको कहूँ ये अश्रु नहीं 
बह गया हैं मेल सब मन का ,
बह  गये हैं जीवन के सारे पाप 
अश्रुओं में
मे  तेरे इस असीम स्नेह की
दिव्यआनंद अनुभूति में
डूबी  हैं तेरी ये अनुभूति मेरे माधव !






तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................