शनिवार, 24 दिसंबर 2011

क्या ये ही मेरी नियति हैं ! कृष्णा


इन रोती अखियों में भी क्यों ,
किसी का मुख देखने की चाह नहीं होती 
लाख बुरा कहे तू मुझे ,
फिर भी मैं तुझे देख के ही क्यों मुस्काऊ
नियति हैं तुम्हारी सेवा ही या 
रूह का कोई भ्रम में पाले जाऊं 
सारा संसार कहे मोहे पागल
फिर  भी तेरी एक विशवास की चाह 
सारा जीवन अर्पण कर जाऊं 
ये कैसी  लगन हैं कृष्णा 
जो ना मुझसे छूटे 
नाम मिले रोज नया 
विशवास की बाटं
मुझसे फिर भी ना छूटे 
रोती जाऊं ,
तेरी श्याम छबी देख
फिर भी में तेरी बलाए लेती जाऊं 
तू ना जाने मेरे कृष्णा !
जो तुने छोड दिया मेरा हाथ 
सारा  संसार मारेगा
मुझे पत्थर ,
पुकारेगा मुझे पगली कहके
लाखो बार ,
शायद ये ही सत्य की गति हैं
हा तेरे नाम से मुझे कोई पगली कहके 
पुकारे ये ही मेरी नियति हैं 
श्री चरणों में अनुभूति पुकारे
अपने माधव को ,
श्याम को 
गिरधर को
गोपाल को
राम को
मेरे कृष्णा !
मुझे रोता छोड,
तू किस संसार में डूबा पड़ा हैं 
आज मेरी आत्मा का विदीर्ण सागर फटा पड़ा हैं 
आखिर कब तक और मेरी ये परीक्षा तू लेता रहेगा
ऐसा ना हो मेरे राम ! मेरे माधव ! मेरे श्याम !
तू रच रहा हो इम्तिहान का पन्ना कोई नया 
और में त्यज दूँ 
इन ये साँसे भी पुकारते -पुकारते नाम तेरा ..............
अनुभूति












तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................