शनिवार, 12 नवंबर 2011

बहुत निर्दयो हो तुम


बहुत निर्दयो हो तुम 
मेरे कृष्णा !
अपार स्नेह भी देते हो ,
और अपने ही जलने का आभास भी ..........
जो तुम जलो इस स्नेह की राह 
तो मे तिल -तिल जल मिट ही जाऊं 
तुम मेरा. जीवन मेरी साधना 
मेरी शक्ति ...........
तुम ही तो हो मेरे करुणाकर !
जिसने  मुझे दीप बनाया 
तुमने ही मुझे अपने अंतस से जलना सिखाया .......
इतना जानती हूँ हर राह ,हर सांस संग रही हूँ 
हर विपदा के आगे खड़ी हूँ ....
मेरा जीवन तुझे ही अर्पण मेरे करुणाकर .....................
श्री चरणों मे अनुभूति


एक भागवतअंश मेरी आत्मा का

हे मधुसूदन !
मेरी आत्मा मे स्वयं उतर कर
मेरे ही हर सवाल का जवाब देते हो ,,,,,,,,,,
मेरे कृष्णा !
मे भीगी हूँ अपने रोम -रोम से देख 
राजा अमरीष  पे तुम्हारी कृपा अपरम्पार 
.हे जगदिश्वर !
जिसके  साथ हो तुम्हरा सुदर्शन 
ये संसार क्या उसका कुछ कर पायेगा ......
हे मेरे मोहेश्वर !
मुझे चेन हैं सिर्फ तेरे चरणों मे 
मुझे मेरा मार्ग दिखाओ ,
इन झूटे रिश्तों से मुझे भी मुक्ति का मार्ग दिखाओ ........
जीवन भर मेरी आत्मा डूबी रहे तेरे भक्ति सागर मे 
इतना ही मुझे वर दो ,,,,,,,
धन्य हू मे तेरे कदमो मे बैठ जो कर सकू मे
ये भागवत आराधन .....
हे कृष्णा !
मुझे ले चल अपने संग 
अपने मधु बन ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ताकि कर सकू मे जीवन भर चेन से 
बेखोफ तुम्हरा आत्मीय स्मरण ...........
मेरी आँखों से तुम्हें देख नीर नहीं
परम आन्नद का अमृत बहता हैं 
जो मे डूबू तेरे सागर मे तो कभी न मे तर पाऊं .......................
मेरे मुरली मनोहर !
बस अमरीष की तरह ही इस आत्मा पे तेरा आशीष पाऊं .........
 श्री चरणों मे तुम्हारी बावरी ,,,,
अनुभूति











तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................