रविवार, 26 जून 2011

संसार

मेरे राम ,
इस दुनिया में पल-पल जीना हैं,
सबसे मुश्किल काम .
कित लगाऊं ध्यान !
जँहा देखू अपने अंतस 
के रोम -रोम में हर अनुभूति 
तेरी में पा जाऊं 
सब कुछ शांत हैं पर मन में 
एक आह उठी हैं अपनी सी
केसे कहूँ ,
मेरे राम !
ये किस आह की ,
किस अंतस के दर्द की बैचेनी सी !
मेरे राम !
तुम ही हो मेरे भोले -भाले नील कंठ ,
सारे संसार का विष ,
अपने कंठ में समाने वाले
इस संसार को हर विपदा से बचाने वाले ,
मुझे भी अपनी ही तरह बनाओ
अब तुम कृष्ण बन छा जाओ
इन सुनी वादियों का मोसम 
अपनी बंसी की धुन से बदल जाओ 
हां अपनी राधा ,गोपियन संग रास रचा जाओ
ये सूना -सूना आँगन मन को नहीं सुहाता 
तुहारे अधरोंकी  मुस्कुराहट   देखे बिन 
दिन नहीं कट पाता,
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
छेड़ो  तुम आज कोई मधुर सरगम 
के देख तुम्हारे क्रोध , आवेश ,आदेश को ,सत्य को
मान  बीत जाएँ यूँ ही मेरा जीवन |
"आप के श्री चरणों में अनुभूति " संसार

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................