एक ही "राम "
जनम ले शरीर तो भी राम ,
छूटे तो भी राम !
मेरा अंतिम सत्य भी,
मेरे आराध्य राम!
जितनी अखंड स्रष्टि उतना,
अंखड मेरा विशवास ,
एक - एक शब्द हैं जो सत्य वो हैं मेरे राम !
एक - एक शब्द हैं जो सत्य वो हैं मेरे राम !
समय , हालत कँहा डोला सके हैं
ये विशवास ,मेरे राम!
संसार झुटा हो सकता हैं
हो सकता हैं हर इंसान
जो झुटा हो ,मेरा राम!
तो में त्याग दूँ ,ये प्राण !
कोई मोल नहीं ,इस शरीर का
मिट के तो रूह मिलेगी राम से
हां अपने आराध्य से ,
इस संसार में सब झूट ये आत्मा का ही रुप सच्चा एक मेरे राम !
इस संसार में सब झूट ये आत्मा का ही रुप सच्चा एक मेरे राम !
संसार की कोई ऐसी यातना नहीं बनी,
जो तोड़ दे मेरा विशवास ,
कोई छीन तो ले मुझसे मेरी आत्मा ,
मेरे रोम -रोम में बसा मेरा राम !
शक्ति को तो अभी परखा नहीं तुमने संसार
देखा नहीं रूप भक्ति का अभी इस जँहा में एक बार
जो शरण लगा एक बार मेरे राम
वो ले छुटे प्राण ,
तो भी न निकल सके ,
इस रूह से राम !
मेने पुकारा हैं इस संसार में,
हर सांस से सिर्फ राम नाम
में तो अडीग धरा हूँ ,
कँहा समझ सका कोई ,
डोलने वाला सागर नहीं में
ना जाने कितनी बार हुआहैं प्रलय ,
कितनी बार सागर तुमने इस धरती को लीला हैं
फिर भी अंनत काल से ये अडिग खड़ी हैं
सामने तुम्हरा ही नाम आत्मा में बसाए ,मेरे राम !
मेरे नवसृजन का प्रारम्भ भी राम !
अंत भी राम !
मेरे राम !
अनुभूति