मंगलवार, 31 मई 2011

मीरा

मीरा अपने कन्हियाँ से इतना स्नेह करती थी 
की जीवन के अनन्य स्नेह के रूप अपने पति में भी 
वो अपने कृष्ण जी को ही देखती थी |
इस अद्भुत भाव को व्यक्त करते उनके ये शब्द .


"मेरे तो गिरिधर गोपाल दुसरो ना कोई ,
जाकें सिर मोर मुकुट मेरों पति सोई ,"
   मीरा  

कलयुग में तुम्हारी जरुरत हैं कान्हा !

स्नेह की
बड़ी -बड़ी परीभाषाएँ
बोलते सूना हैं पडा हैं ,देखा हैं,लोगो को
और अंत में सब को सत्य से मुँह मोड़ते ही देखा हैं |

क्या ये ही हैं स्नेह ?
या फिर किताबो के पन्नो से लिखना ही,
जीवन सत्य हैं
उसमे शब्दों के सच की आत्मा कँहा हैं
कँहा हैं स्नेह सागर |

मेरे कृष्णा !
तुम्हरा स्नेह सागर खाली होगया हैं अब ,
जिसकी जगह भरी हैं कठोरता ने ,
सहानुभूतियों ने , स्वार्थी होने के नामो ने ,

कँहा हो 
कान्हा जी आप 
इस संसार में , 
सब कुछ तो झूठा हैं यंहा 
एक नहीं सब रिश्ते झूटे हैं |
सब लुटने और मन को तीर चुभोने लगे हैं


कँहा हो कान्हा ?
स्नेह के सागर इस संसार के 
कलयुग में तुम्हारी जरुरत हैं कान्हा
अपने बैकुंठ से चले भी आओ ,
चले भी आओ ,

अनुभूति














राधा का विश्वास


ओ कन्हियाँ
तेरी बावरी राधा ,
तुझे यमुना तट पुकारे ,
ओ श्याम ,
अपनी बंसी ले आओ ,
नदियाँ किनारे
तुम्हारी बंसी बिन सूना पडा ,
राधा का संसार ,
विशवास हैं राधा को ,
मेरे कान्हा जी आयेंगे ,
बाटनिहारती खड़ी हैं राधा रानी
बूंद - बूंद गिराती जाती हैं,
अखियाँ से पानी ,
कान्हा जी
अब तो आजाओं
तुम ही कहो हो राधे जब पुकारोगी
में चला आउंगा , यमुना किनारे
चले आओ ,
श्याम
!
राधा रानी का ये विशवास
पूरा कर जाओ ,
वो पगली कुछ नहीं मांगे ,
वो खो जाए ,बस सुन ,
तुम्हारी मुरली की धुन
युमना तट चले आओ एक बार
अपनी राधा का विश्वास पूरा कर जाओ !
मेरे मुरलीवाले!
मेरे कोस्तुभ धारी !
श्री चरणों में अनुभूति

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................