सार्थक नव -सृजन
मेरे राम !
मेरी आत्मा
मेरी रूह के रोम -रोम में,
बसने वाले मेरा राम !
तेरी भक्ति , तेरे नाम और तेरे आशीष से ,
रोशन होने लगी हैं मेरी राहें |
तन्हा हूँ पर फिर भी कभी तन्हा नहीं ,
हर कदम जब भी देखा हैं मुड़ के मेरे राम !
आप ने दिया हैं अपनी आत्मा से मेरा साथ ,
में दम नहीं तोड़ने वाली इन घुटनों में ,
मेरे इस नव सृजन को ,
नहीं होने देने चाहती में नष्ट
हर कदम जुटी हूँ इन अंधेरों लड़ने में ,
रण में लड़ने वाले ही जीता करते हैं |
में तो डरते -डरते भूल ही गयी थी,
अपने आप का अर्थ |
जीने लगी हूँ अपने लिए
होने लगी हूँ स्वार्थी |
हर सपना मुझे याद हैं ,
मेरी आँखों में निरंतर
अनवरत बहता रहता हैं वो जीवन बनकर
राम नाम की ओषधी लेकर लड़ने लगी हूँ
इस जीवन की इस असुरक्षा के खिलाफ
ये राम नाम की चिड़ियाँ
डाली -डाली खोज रही
अपना रास्ता ,अपना लक्ष्य |
कोशिश करने वाले की हार नहीं होती |
रामायणऔर भागवत दूर पड़े हैं
बाकी हैं भागवत का अंतिम चरण अभी
वो चरण ही देगा मेरी आत्मा को नया मार्ग |
"अनुभूति "
मेरे राम !
मेरी आत्मा
मेरी रूह के रोम -रोम में,
बसने वाले मेरा राम !
तेरी भक्ति , तेरे नाम और तेरे आशीष से ,
रोशन होने लगी हैं मेरी राहें |
तन्हा हूँ पर फिर भी कभी तन्हा नहीं ,
हर कदम जब भी देखा हैं मुड़ के मेरे राम !
आप ने दिया हैं अपनी आत्मा से मेरा साथ ,
में दम नहीं तोड़ने वाली इन घुटनों में ,
मेरे इस नव सृजन को ,
नहीं होने देने चाहती में नष्ट
हर कदम जुटी हूँ इन अंधेरों लड़ने में ,
रण में लड़ने वाले ही जीता करते हैं |
में तो डरते -डरते भूल ही गयी थी,
अपने आप का अर्थ |
जीने लगी हूँ अपने लिए
होने लगी हूँ स्वार्थी |
हर सपना मुझे याद हैं ,
मेरी आँखों में निरंतर
अनवरत बहता रहता हैं वो जीवन बनकर
राम नाम की ओषधी लेकर लड़ने लगी हूँ
इस जीवन की इस असुरक्षा के खिलाफ
ये राम नाम की चिड़ियाँ
डाली -डाली खोज रही
अपना रास्ता ,अपना लक्ष्य |
कोशिश करने वाले की हार नहीं होती |
रामायणऔर भागवत दूर पड़े हैं
बाकी हैं भागवत का अंतिम चरण अभी
वो चरण ही देगा मेरी आत्मा को नया मार्ग |
"अनुभूति "