मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

मेरी श्रद्धा के सागर में बसने वाले श्री हरि


मेरी श्रद्धा के सागर में बसने वाले ,
मेरे श्री हरि ,
मेरे राम ,
मेरी श्रद्धा इन आँखों से बहती,
इन शांत अश्रु धाराओं से 
मैं करती तुम्हे प्रणाम .

मेरी श्रद्धा के जल को स्वीकार कर ,
अपने चरणों में हो जाने दो  इस तुच्छ आत्मा को भी पावन ,
ओ मेरे श्री हरि , 
ओ मेरे राम ,
मेरे स्वामी ,मेरे गिरधर गोपाल 

तन - मन का रोम - रोम तेरी भक्ति को पाकर है अभिभूत .
इतना सुन्दर होगा कभी मेरे जीवन का स्वरुप ,
ये स्वप्न से भी परे था |

कृतार्थ कर दिया प्रभु तुमने मुझे ,
इस तुच्छ को अपने श्री चरणों में कर स्वीकार |

ओ मेरे राम ,
श्री हरि ,

अपना सर्वस्व समर्पित कर ,
 करती हूँ तुम्हारे इन श्री चरणों में 
कोटि- कोटि प्रणाम 

-- अनुभूति 

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................