बुधवार, 23 मार्च 2011

आलौकिक स्नेह



प्रभु मेरे !
तेरे एहसासों के साए में,
पल रहा प्यार मेरा ,

तेरी खोमोशी में,
पल रहा एक अनुराग मेरा.

सोचती हूँ कभी कहते नहीं ,
कोई इजहार नहीं 
फिर तुम्हारी आँखे क्यों मुझसे बात करती हैं ? 

बिना कहे भी ,
ये दिल से दिल के बीच कौन सा यकीन पल रहा है , 
ये यकीन क्यों है !
ये जान कर जी रही पल -पल सिर्फ मैं तेरे लिए |
तुम्हारे दिए हर परिवर्तन को महसूस करती हूँ ,
और सोचती हूँ क्यों बदल गए भगवान मेरे 
इतना लाड क्यों बरसाने लगे प्रभु मेरे !
इस बावली पर


अभिभूत हूँ तुम्हारे इस आलौकिक स्नेह से ,
कृतार्थ कर दिया ,प्रभु !
इस पागल का स्नेह 
अपने चरणों में स्वीकार करके |

अब मुझे डर नहीं, मेरा मोक्ष होगा कि नहीं ,
वह मोक्ष होकर मुझे तेरे कदमो की सेवा ही मिलेगी 

प्रभु मेरे !

कृतार्थ कर दिया तूने मुझे 
धन्य हूँ मैं तेरे नाम से .
मेरे प्रभु,! मेरे राम !

बस यूँ ही मेरी आत्मा में वास करना ,
मुझे अपने लिए यूँ ही बौराए रखना ,
अपने चरणों यूँ ही स्थान देना ,
इतनी ही विनती है |

मेरा रोम -रोम ऋणी रहेगा तेरा 
तेरे इस संसार में अब कोई ख्वाहिश नहीं ,
मेरे प्रभु , मेरे राम 

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................