गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

इन्तजार

इन्तजार !! 

सोलह बरस की उमर से ,
पच्चीसवें बसंत का इन्तजार ,
ना जाने किन -किन हसरतो,
को मन के किसी कोने में छुपाए रखता हैं |

भीगी मेहंदी से रची 
हथेलियों की खुशबू का इन्तजार ,

या मन ही मन 
उनसे मिलने का इन्तजार |

हां , 
 जीवन का हर पल 
किसी न किसी ख़ुशी का इन्तजार ही तो है  |


-- अनुभूति 

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................