मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

फ़रिश्ते



खुद पे नहीं यकीं जितना ,
उतना हम तुमपे यकीं रखते हैं |

तुम समझ सको या न समझ सको 
हम तुम्हारे ही कदमो पे अपनी जिन्दगी को रखते हैं |

बहुत मुश्किल हैं ,हालत-ए-दौर में जिन्दगी को समझना ,
इसे ही अपना नसीब मान कर हम ,तेरी बंदगी करते हैं |

खुदा ढूढने निकली थी मैं  इस दुनिया में 
कोई एक खुदा मिला हो तो बात भी हो|


यंहा तो,
खुदा यूँ मेहरबां, 
हम पे ,
के हर कदम ,
एक
नए फ़रिश्ते से मुलाकात होती हैं |


-- अनुभूति 

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................