बुधवार, 16 नवंबर 2011

मुझे स्वीकार अपने बैकुंठ


     मेरे कृष्णा ! 
                             
  हार गयी हैं तेरा इतंजार करती दर्द करती मेरी आँखे 
     हर आह का दर्द मेरी सांसो पे भारी 
                                                     मे नहीं जी पाऊं अब 
   कृष्णा !
            अब सह नहीं पाऊं दुनिया की बतिया सारी
      मुझे नहीं निभती कोई प्रीत न दुनिया की रीत  मुझे होके ख़ाक अब मिट जाने दे  
मेरे माधव !
क्षमा कर में नहीं लायक तेरी प्रीत के 
,न ही मेरी कोई भक्ति अपार ,मुझे स्वीकार अपने बैकुंठ 
अपने श्री चरणों की सेवा में 

अनुभूति

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तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................