शनिवार, 12 नवंबर 2011

बहुत निर्दयो हो तुम


बहुत निर्दयो हो तुम 
मेरे कृष्णा !
अपार स्नेह भी देते हो ,
और अपने ही जलने का आभास भी ..........
जो तुम जलो इस स्नेह की राह 
तो मे तिल -तिल जल मिट ही जाऊं 
तुम मेरा. जीवन मेरी साधना 
मेरी शक्ति ...........
तुम ही तो हो मेरे करुणाकर !
जिसने  मुझे दीप बनाया 
तुमने ही मुझे अपने अंतस से जलना सिखाया .......
इतना जानती हूँ हर राह ,हर सांस संग रही हूँ 
हर विपदा के आगे खड़ी हूँ ....
मेरा जीवन तुझे ही अर्पण मेरे करुणाकर .....................
श्री चरणों मे अनुभूति


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तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................