गुरुवार, 10 नवंबर 2011

पुंसवन व्रत

पुंसवन व्रत 


मेरे कृष्णा !
तुम्हारे आशीष बिन मेने कब कुछ किया हैं .
एक लंबे इन्तजार के बाद मार्गशीर्ष का ये दिन आया हैं ,
दीजो अपने चरणों का आशीष ,
तो मे एक बार फिर दोहरा सकू ये संकल्प ,
आत्मा की प्यास तुम्हरे रूप मे पाऊं मे एक सन्यासी 
मेरे प्रभु !
साथ  मेरे कोई नहीं तुम ही खड़े हो निभाने 
मे अपना धर्म एक हाथ निभा लू 
मे लक्ष्मी तो विष्णु रूप तुम्हे ही पाऊं 
हां ये वर दो और पूरा करो मेरी आत्मा की प्यास 
मेरे कोस्तुभ स्वामी !
मे अपने सत्य और अक्ष्णु विशवास के साथ 
तुम्हे  अपनी आत्मा का अधिपति माने आज भी वही खड़ी हूँ 
दीजियो अपनी लक्ष्मी का साथ ,
मेरे नारायण !
स्वप्न जब हैं दोनों का एक सन्यासी
तो फिर काहे की दुरी मेरे स्वामी !
तुम जानो कृष्णा ! 
मेरी आत्मा की बतिया सारी 
दीजो इन व्रती दिनों मे साथ 
मे रहूंगी सदा तुम्हरे चरणों की आभारी 
रूह की प्यास मेने आज तुमसे कह डाली 
जो स्वार्थ नहीं समर्पण मेरा 
पूर्णता मेरी 
तुम बिन कोई नहीं जो दे सके इस आत्मा को 
स्वप्न सुनहरा ............................

श्री चरणों मे तुम्हारी अनु

















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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................