सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

तेरे नाम


तेरे नाम ने यूँ सिखाई हमको जिन्दगी से वफ़ा .
की दिल को धडकना आ गया ,
यूँ चुपके से तुम दिल के आँगन में कब उतर पड़े
पायलो की खनक को पता भी न चला
की अब वो छम -छम भी तुम्हारे नाम से करती हैं ,
हाथो की कलाई में खनकती हैं
तुम्हारी एक -एक धडकन की तरह एक -एक चूड़ी ,
सजती हैं सुर्ख रंग में मेहंदी ,
केसे कहू मेरे हमदम ने जीती हूँ
तेरी
रूह की पाकीजगी के दम से

तुम्हारे दर्द से कब मेने अपने जोड़ लिए रिश्ते
ये अपनी रूह पे पड़ती चोट को भी न चला पता
वो तो जब तेरे आसुओं की आह ने जब चीर दिया मुझे
मुझे अपनी ही तरह उठते तेरी रूह के दर्द का पता चला
तुझपे कब निसार हो गयी में तेरी रूह के दर्द की आगोश में
मुझे पता भी न चला
अब हालत हें ये दिल की
तेरे दीदार की एक बार चाहत में
वो करती हैं सोलह सिंगार
सजते -सजते जब झड जाती हें काँच की कोई चूड़ी
और बह उठता हैं लहू तो उससे उठते तेज दर्द से चलता हैं
तेरी हुकूमत का मुझपे पता ,
मेरे खुदा !
मेरे हमदम की साँसों को यूँ ही सलामत रख ,
क्योकि
वो न रहा तो में भी न रहूंगी
और तुझे मेरे अहसासों का मेरी बंदगी का
तुझे मेरे शब्दों से भी न चलेगा पता
की तुझसे भी ज्यादा कोई
अपने हमदम की करता हैं बंदगी
या खुदा मुझे माफ़ करना में जानती हूँ
जन्नत मुझे नसीब न होगी

क्योकि में तेरी ही आँखों के सामने करती हूँ
अपने महबूब के कदमो में नमाज अदा
मेने न पाया न देखा हैं
उस धवल पाकीजा रूह की तरह कोई साया
मेरे खुदा मुझे,तू मुझमे. मेरा हमदम होकर
मेरा खुदा बनकर मुझमे कब समा गया मुझे पता भी न चला

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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................