रविवार, 9 अक्तूबर 2011

खाहिश

मुझे न  आसमान की उड़ान की खाहिश हैं ,
चाँद, तारों की
बेबसी में इन आँखों से झरते आसुओं को
बस तेरे कदमो की इबादत की खाहिश हैं
साँस बन कर जो रूह में उतर गया हैं
जिदगी को बस उस खुदा के कदमो में बिछ जाने की खाहिश हैं
तेरी आँहो के दर्द और आँखों से गिरते अश्को की बंदगी की हैं मेने
बस इसीलिए तेरे कदमो पे लुट जाने की खाहिश हैं


मेरी उम्मीदों का आसमान नहीं बहुत बड़ा
इसलिए तेरी कायनात से अपने लिए
प्यार के चंद बूदों की खाहिश हैं


में जानती हूँ मिटना ही मेरी नियति हैं
हां में मिट जाऊं में तेरी एक मुस्कराहट पे
लुटा दूँ सदके में अपनी जान
बस जिन्दगी की ये ही खाहिश हैं


मेरी जन्दगी .,मेरी सांसे
सब कुछ तुझसे ही हैं रोशन
हां बस तुझे ,हँसते गुलशन में मुस्कुराते देखने की खाहिश हैं !


अनुभूति

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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................