शनिवार, 10 सितंबर 2011

मेरे कृष्णा ! तुम्हारी कठोरता सुख मेरा ही ,

मेरे कृष्णा !
तुम बिन कोई नहीं मेरा इस संसार
तुम जानो मेरे मन की बतियाँ,
और दो खामोश सीख अपार ,
तुम्हारी कठोरता में भी छिपा हैं
मेरा ही अपार सुख मेरा ही ,
जानो तुम ही सब कुछ
इसीलिए में मानु अपने को धन्य
और करू जन्मो तुम्हारी चरण सेवा अपार
धन्य हूँ में जनम जो पाया तुम्हारा स्नेह अपार
जो तुम दोहर क्षण सब स्वीकार
पर जो तुमने तय किया वो ही मेरा भाग्य
तो फिर किस कठिन राह से इनकार
जो तुम संग बसे हो इस आत्मा के
फिर क्या डर इस तुच्छ संसार
सदा दूर से ही ,अपने बैकुंठ से ही बरसाते रहो
स्नेह आशीष अपार
में बदली थी बदली हूँ
मेरे कृष्णा !
में तो चल पड़ी हूँ
तेरी ही राह
मेरा मोक्ष तेरी चरण सेवा
ये ही जीवन लक्ष्य मेरा
श्री चरणों में
अनुभूति






1 टिप्पणी:

drsatyajitsahu.blogspot.in ने कहा…

anupam bhavbhari kavita hai..............................

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................