शनिवार, 13 अगस्त 2011

मेरे कान्हा जी ! प्यारी बहन सुभद्रा की स्नेह डोर

मेरे कान्हा जी !
आज तो तुम्हारी कलाई पर भी बाँधी जायेगी
प्यारी बहन सुभद्रा की स्नेह डोर
मेरे कृष्णा!
जीवन के सारे रूपों में
में बन्धनों में
में कितने सरल स्नेह सागर हो तुम
तुम्हारी आँखों से बरसती हैं
बहन सुभद्रा और जाने कितनी बहनों के लिए
भी अनन्य स्नेह ,वात्सल्य और स्नेहिल प्रीत ,
एक ही पल में ले लेते हो तुम सारी बलाएँ
अपने सर और दे देते हो
जीवन भर का वात्सल्य और स्नेह आशीष !


मेरे कृष्णा ! मेरे कोस्तुभ धारी !
में धन्य हूँ जिसने पायी हैं
तेरी चरण सेवा
तेरी हुकूमत और तेरे दासत्व की तक़दीर
बस ,इन अखियन से ,
इस आत्मा के नैनों से में महसूस करती रहूँ
सदा तेरी अनमोल प्रीत
हां संसार को बँटती वो तेरी वात्सल्य प्रीत !
अनुभूति

कोई टिप्पणी नहीं:

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................