बुधवार, 3 अगस्त 2011

में बन जाऊं जोगन तेरे नाम की मेरे कृष्णा !




स्वर्ग से भी खुबसूरत इन फिजाओं में
रिम-झिम बरसती इन घटाओ में
बिखरी हूँ ,
मेरे कृष्णा
!तेरी बाहों में ,

भीगी हूँ अपने अंतस से इन रिम -झिम करती
प्यार की फुहारों में
लगता हैं बसंत एक बार फिर लौट आया हैं
मेरी जिन्दगी में अमलतास सजाने को
पहन के तेरे स्नेह की पायल
में बन जाऊं जोगन
तेरे नाम की
मेरे कृष्णा !
मेरे कोस्तुभ धारी

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तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................