सोमवार, 11 जुलाई 2011

कान्हा जी ! तेरी भक्ति का रंग


न रूप , न रंग,
न संसार
में तो रंगी हूँ
कान्हा जी !
आप के ही रंग में सौ बार
तेरी भक्ति का रंग मुझपे ऐसा चड़ा
कोई और रंग अब न चद पाए
अनुभूति

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तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................