शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

मेरे कोस्तुभ धारी ! श्री चरणों में करो स्वीकार अनुभूति का ये चरण वंदन

मेरे माधव !
मेरे गोविन्द !
मेरे कोस्तुभ धारी !
 मेरे मुरली मनोहर !
मेरे राघव !
ये केसी हैं अद्भुत माया !
में नहीं समझ पाऊं ये ,
भोर का कोई स्वप्न या भ्रम !
यूँ बरसे स्नेह सागर तेरा ,
जेसे स्नेह का अमृत
इतना मीठा ,इतना सुखद ,इतना अद्भुत
रूप तुहारा कृष्णा !
रूठो तो जिस्म से जान ले जाओ
और बरसों स्नेह से एक पल में इस निर्धन को
अपने असीम स्नेह का अद्भुत सागर दे जाओ

कृष्णा !
अगर ये स्वप्न कोई सुनहरा तो कभी टूटे ना
यूँ ही बिखरी रहे मोगरे और गुलाबो की भीनी खुशबु
और में तुहारे इन कदमो से

चरणों से लिपटी बहाती रहूँ
ये स्नेह नीर
मेरी आँखों में बसता रहे ,
तेरे चरणों की सेवा का स्नेह नीर 
में मर कर भी मिटा कर अपने को रख सकू
तेर्री इस अनुपम स्नेह आशीष के
वरदान का सम्मान .
जीवित हूँ जब तक तेरी बावरी बन ,
दुनिया यूँ ही भूली रहूँ
तेरी चरण धुली बना के अपने मस्तक का रक्त कुमकुम में

सजती रहूँ ,
हां कृष्णा !
में भी मीरा की तरह लुटा दूँ अपना संसार
तेरे असीम स्नेह में
इतनी अर्चना करना चरणों में स्वीकार
खुले आकाश सा बंधन मुक्त निराकार स्नेह मेरा
में एक सरिता स्नेह की
बह जाने ,
दे अपना अनुराग
जीने का इरादा नहीं
यूँ ही तेरी ही असीम भक्ति में डूब
मिट जाने दे .
हां खो जाने दे कृष्णा ,कोस्तुभ धारी मुझे
उस असीम स्नेह भक्ति सागर में
उन मीठी अनुभूतियों में |
श्री चरणों में करो स्वीकार
अनुभूति का ये चरण वंदन 



 

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