बुधवार, 6 जुलाई 2011

कृष्णा बावरी अनुभूति

 भगवान श्री कृष्ण के साथ आत्मा से जोड़ी गयी प्रीत का सुख अनन्य हैं इसे समझना भोतिक लोगो के लिए थोड़ा मुश्किल |जिसने इस भक्ति और स्नेह की इस आलोकिक के संसार को समझा हें वो इस संसार से परे हो जाता हैं कृष्णा की इस बावरी अनुभूति की तरह !

 बरसती फिजा के साथ ,
बरस रहे हैं फुल मेरी राहों में 
में हूँ खोयी हूँ 
इन खुबसूरत पन्हाओ में 
खिली हैं  जिन्दगी जेसे  खिल गया हो 
ग्रहण के बाद का चाँद 
हां आज वो चाँद मेरे  चेहरे पे खिला हैं 
और उसकी असीम चांदनी ,
मेरी मुस्कुराहट बन सजी हैं दुल्हन की तरह
बसंती रंगों में झूल रहा हैं ये सावन 
इतना खुबसूरत नहीं था कभी ,
ये मतवाला योवन भी 
लगता हैं आज जेसे सारी परीक्षाओं
का अंत कर दिया हो तुमने,
मेरे कोस्तुभ धारी !
केसा अद्भुत आनंद हैं!
ये केसे शब्दों से में कह दू !
मेरे कान्हा ! 
तुम तो जानो  आत्मा का हर भाव 
,हर भाव में लिपटे पड़े हो ,
अंतस में छुते हुए हो
मेरे कृष्णा !
इन अखियन से देखे कोई तो समझे ,
आत्मा से महसूस करे तो जाने
तेरे चरणों का स्पर्श केसा अद्भुत होगा | 
जो सुख पाया मेरे राम !
के चरण धोकर
"केवट राज "
ने वो ही सुख में भी पा जाऊं !
डरती हूँ अपने ही कृष्णा और राम
की असीम प्रीत को में 
नजर न लगा दूँ में 
इसलिए कान्हा !
बन राधिका में 
आज तुम्हे अपनी  ही अखियन,
के काजल से ये काला टिका


लगा दूँ |
श्री चरणों में अनुभूति

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