मंगलवार, 28 जून 2011

"अजी रूठ कर अब कँहा जाइयेगा ,

 
एक खुबसूरत शाम का जादू ,एक मासूम सी मुस्कुराती शाम ,
अपनी ही नादनी पे अटखेली करती एक शाम 
लता जी की आवाज के साथ
     "अजी रूठ कर अब कँहा जाइयेगा ,
       जँहा जाइयेगा हमें पाइयेगा "
         खुबसूरत एहसाओं के साथ 
    अनुभूति

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तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................