गुरुवार, 30 जून 2011

स्नेह सागर


ओ मेरे स्नेह सागर !
 
तुम जीवन्त हो मेरे रोम -रोम में
अपने झूले पे आँखे बंद किये में
इस सुहानी फिजा के साथ महसूस करती हूँ
तुम्हारी मिलो दूर से आती
तुम्हारे असीम स्नेह से उठती उन बूंदों को
और भीग जाती हूँ अपने अंतस तक
होकर आत्म आनंद विभोर
इस बदरी के साथ मेरी आँखों से बह उठता हैं ,
"तुम्हरा असीम स्नेह"
और मेरे लिए इबादत में खड़े जुड़े हुए तुम्हारे हाथो को देख
हो जाता हैं तुम्हारे चरणों के प्रति
समर्पित ,हां मेरी आँखों का ये नीर
में कृतार्थ हूँ अपने शिव को साक्षात् पाकर
हां आज सिमटी हूँ में ऐसे ही अपने अंतस में
जेसे प्रथम आलिंगन पे बेहद शर्म से धरती कठोरता से लिपटी हो
अपने स्नेह सागर से |
अनुभूति

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