बुधवार, 29 जून 2011

आत्म आनंद अनुभूति



बेहद खुबसूरत हैं हर फिज़ा
और खुबसूरत हैं जिन्दगी मेरी हर पल यंहा ,
क्यों काट दू इसे में यूँ ही रोते -रोते  !

लम्हा- लम्हा खतम होता जा रहा हैं 
समेट लू तेरी ,
निश्चल मुस्कुराहटों और विशवास के पलों को ,
तेरे अश्रु पूरित स्नेह आलिंगन के  पारितोषिक  को ,
मेरे करीब आके कहे जाने वाले हर एक एहसास को ,
मेरे अमर स्वप्न को ,
मेरा स्वप्न जो तेरी रूह में बसा हैं ,
और में जो तेरे नाम से महकी हूँ
मेरी  रूह धडकती हैं तेरे नाम से
मेरे पास तो महका हैं जिन्दगी का ये जँहा,
तेरी मेरी रूह की
हर पल की आत्म आनंद अनुभूति  ,
सिमटी हैं मेरी साँसों में ,
अधरों में 
इन खुली जुल्फों में 
ये नीला आकाश तो बहुत छोटा पडा हैं
मेरे असीम स्नेह के आगे 
उस मदहोशी के आगे जिसमे
में और तुम खोये हैं दो आत्माओ के साथ 
कोई नहीं छीन सकता मेरी साँसों से 
हां तुम तो बसे हो मुझमे मेरे अंतस में 
इस भोतिकता से दूर एक जँहा और हैं 
जिसमे बसे हैं हम -तुम 
बनके एक असीम 
आत्म आनंद अनुभूति

"अनुभूति "
जीवन बेहद खुबसूरत  हें और कुछ लम्हें इतने प्यारे होते हैं
जो पुरे जीवन की मुस्कुराहटों के लिए काफी होते हैं
बस जीवन की छलनी से उन लम्हों को हम थाम ले | 
एक गीत हैं जिसके शब्द बड़े खुबसूरत हैं 
रहे न रहे हम ,महका करेंगे ,बनके कली ,
बनके सबा ,बागे ऐ  वफ़ा में महका करेंगे
क्या हैं मिलना ?क्या हैं बिछड़ना  याद नहीं हैं  हमको
कुचे में दिल के आये हो जब से  दिल की जमी हैं याद हमको |
जब न होंगे हम ,
तब हमारी जब ख़ाक पे तुम रुकोगे चलते -चलते ,
अश्को से भीगी चांदनी में ,
एक सदा सी सुनोगे चलते -चलते |
वही पे कही हम,
तुम से मिलंगे बनके कली ,बनके वफ़ा बागे ऐ वफ़ा में
रहे न रहे हम महका करंगे |
अंतस में  बसा ये गीत सुहाना गीत 


अनुभूति 

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