शुक्रवार, 24 जून 2011

मेरी प्रीत बस तुझसे मेरे कान्हा !

मेरे कोस्तुभ स्वामी !
तेरी पत्थर की मूक मूरत से ही में स्नेह करू
तेरे अधरों पे धरी मुरलिया की धुन में ही सुनु ,
भागवत के हर रूप से भी में तुझे ही पाऊं
तेरी कही हर बात से सीखना ,
तुझे निहारना यूं एक टक,
और तेरी अधरों की मुरलिया में खो जाना ,
और तुझे पुकारते -पुकारते
रोते -रोते सो जाना ही जिन्दगी हैं मेरी
मुझे नहीं आया
कोई पाखंड ,कोई विधि
मुझे तो भायी वो पहले धवल रूप,
निश्चल सादगी तेरी
मेरी आत्मा में बसा हैं
तेरे होठो के ज्ञान की
भागवत और गीता का हर संवाद
पग -पग पाया ज्ञान, 
सबसे बड़ा हैं मेरे लिए तेरा सत्य
तेरी ही संग धवल रंगों में ,
रंगी हैं मेरी दुनिया
मुरली धर !
तेरे लिए दुनिया
और मेरे लिए सिर्फ तुम ही हो,
लेकिन उतना ही बड़ा कडवा सच
तुम मेरे लिए नहीं संसार के लिए बने हो
कन्हाई !
मेरे लिए तुमने शब्द बनाएं
कोई गीत
सुनी पड़ी हैं तुम बिन मेरी प्रीत
कान्हा !
मेरे तप का कब अंत होगा
ये तो जानो तुम ही अन्तर्यामी
कब तक सहूंगी
कब तक यूं ही पगलाती
तेरी इस पत्थर की मूरत से में बतियाती रहूंगी
हां ,कान्हा !
इतनी देर कर देना
इतनी देर कर देना की दुनिया ,
मुझे पागलों के बीच छोड़ दे
या में जल -जल के ख़ाक ही क्यों ना हो जाऊं
हां तड़पते -तडपते ही ,
तेरी मूरत के क़दमों में ही रख के सर
ये प्राण त्यज जाऊं !
मेरे सत्य की अब ,
मेरी भक्ति की
कोई परिक्षाअब लो
कन्हाई !
कर चुकी हूँ अर्पण
तुम्हारे श्री चरणों में
एक बार दर्शन दे मुझे उठा इन चरण से
अपने भी गले ला लो
हां राधा की तरह कोस्तुभ स्वामी
मेरी भी प्रीत अमर बना दो
मेरी यही विनती चाहें पुकारूँ
इस आत्मा से में "इशु "
" कोस्तुभ स्वामी "
"चाहें राम "
मेरी प्रीत बस तुझसे मेरे कान्हा !
इस संसार के किसी इंसान की तरफ ,
निगाह नहीं उठत
मेरे श्याम !
"आप के श्री चरणों में आप की अनुभूति,
करती रहे म्रत्यु पर्यंत यूं ही प्रणाम
मेरे कोस्तुभ धारी !
स्वीकार करों अपने चरणन में आत्मीय प्रणाम

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