शुक्रवार, 17 जून 2011

हे माँ शारदे !

माँ वीणा वादिनी ,
सहस्त्रो नमन तुम्हारे चरणों में 
माँ , ये बेटी तड़प रही ,
अंतर आत्मा से कर रही तुम्हे पुकार  .
हे माँ शारदे मुझे अब ले लो ,
अपनी अपनी आंचल की छावं ,
व्याकुल ,विचलित मन ,
बिखरी साँसे कही नहीं पा सकेंगी थाह 
सिवा आप की आंचल की छावं के ,
बंद हैं रास्ते सारे , भ्रम बने हैं इस संसार 
कुछ पल के साथी ,
कुछ क्षण दे खुशी ,
दे जाते जीवन भर की उदासी
हे माँ , तुम तो जगत जननी ,
दो मुझे सिर्फ अंत ज्ञान का आशीष 
ये ही चाहे मेरी आत्मा ,
दुनिया जाए भोतिकता की और ,
मुझे खिचे वन , कानन ,गंगा के घाट
ये केसा हैं विचित्र रूप हैं माँ जीवन का
समझ नहीं पाऊं .
मुझे दो ज्ञान का उजाला ,
दूर करो ये सब भ्रम मेरे
या भोतिक या सन्यासी 
एक रूप दिला दो मुझको 
हां माँ !
इस भोतिक संसार से दूर ,
कोई मार्ग तो दिखा दो मुझे .
हे माँ शारदे !
दो स्नेह आशीष 
मुझे दिखाओं मुझे ज्ञान की राह बस 
हे माँ!
अब मुझे मुक्ति दिलाओ इस भोतिक संसार से |

अनुभूति

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