शुक्रवार, 3 जून 2011

एक अद्भुत गीत

 मेरे भगवान !
मेरे कान्हा! मेरे कोस्तुभ धारी !
के चरणों में एक अद्भुत गीत , 
एक पुकार अपने कन्हाई को ,
       वही पुकार जो राधा ने अपने कृष्ण से की ,
सीता ने अपने राम से ,
और एक भक्त अपने भगवान से करता हैं
की जीवन में एक बार उसका साक्षात दर्शन हो |
मेरे कान्हा जी!
इस" अनुभूति "की इस संसार में और कोई इच्छा नहीं |
आप का दर्शन मेरी भक्ति और मेरा मोक्ष दोनों हैं |
 में अपने आराध्य भगवान श्री कृष्ण जी से करती हूँ |  
कन्हाई मेरी पुकार भी इस जीवन में सुन लो
  जिस लोक में हो ये बावरी आप को कँहा खोजेगी | 
आप को कान्हा जी !
                                                     
श्री चरणों में अनुभूति

कोई टिप्पणी नहीं:

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................