मंगलवार, 14 जून 2011

कठोरता का आशीष

मेरे श्री हरी!
मेरे नारायण!
जगदीश्वर! ,जगत्पति !
मेरे नाम लिखी हो चाहें 
आप ने  संसार की सारी पीड़ा ,
मुझे कोई पीड़ा नहीं फिर भी 
इसमें भी मेरा सुख हैं राम जी !
संसार  को दने को चाहे आप ने सुख दिया ,
लेकिन मेरे लिए आप ने कुछ तो किया ,
फिर भी धनी हूँ संसार की सबसे बड़ी में 
क्योकि मेरी आँखों से गिरती ,
हर आंसू की बूंद में सदा आप की ही पुकार
होती हैं |
इस पुरे संसार में मुझसा कोई नहीं जो
जो हर -पल घड़ी में अपनी
हर आंसू की बूंद से अपने राम को भजता हो और
आप की साँसों के करीब रहता हो
जिसके रोम- रोम में बसे हो आप 
उसे संसार की किस पीड़ा का डर|

मेरे वासुदेव!
इतनी विनती मेरी सदा तुम्हारे श्री चरणों में
मेरे राम को दीजो इतनी  शक्ति ,
इतनी कठोरता दीजो ,
की मुझे वो हजारो तीरों की नोक से बिंध दे तो भी
उनकी आत्मा विचलित न हो ,
दुखी न हो , 
कही कोई ग्लानी न अपने मन में रख पाए
वो सदा मुस्कुराएँ 
और सदा अपने एक छत्र आधिपत्य को बढ़ाते जाएँ |
बस जीवन में इतनी भक्ति मेरी तुझसे मेरे राम !
जिसे संसार में मिला हो तेरी ही साँसों में हर नाम 
उसके लिए व्यर्थ हैं रंग सारे 
निरर्थक हैं मातृत्व संस्कार 
सब कुछ तुझको अर्पण 
साँसे वचन बद्ध हैं मेरी 
नहीं तो ये भी में छोड़ देती |
ये बाकी हैं मुझमे क्योकि मुझे लड़ना हैं
ता उम्र अपनी रूह  सच के लिए
इस तुच्छ की भक्ति को स्वीकार  करो अपने चरणों में 
मेरे राम! , मेरे कोस्तुभ धारी!
में नहीं मांगू कुछ और आप से
इस संसार  में छोडू जब प्राण 
मेरे होठो से निकले तेरा ही नाम 
मेरे राम! राम! राम !
अनुभूति

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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................