शनिवार, 4 जून 2011

जी चाहे उतार लू आज बलाएँ सारी ओ मेरे कोस्तुभ धारी , कान्हा ,

ओ मेरे कोस्तुभ धारी ,
कान्हा ,
आज मोहित हूँ 
तेरा मासूम ह्रदय रूप देखकर ,
कितना सरल ,
निष्कपट तेरा रोम -रोम 
मेरे कान्हा!
मन हैं धवल आकाश ,
आत्मा हैं या,
स्वयं वासुदेव का गुण 
अनंत आकाश की उचाईयों के साथ ,
धरती का आलिंगन भी तुम्हारे ह्रदय में 
कान्हा जी |
मेरे रोम -रोम के स्वामी 
बलिहारी जाऊ इस मासूम रूप में तुहारे 
जी चाहे उतार लू आज बलाएँ सारी ,
बन जाऊ यशोदा 
लगा लू गले से अपने कान्हा को ,
मासुम सी बातोको  , 
सरलता को , 
आज बलि हारी हूँ 
कन्हियाँ  !
तेरी निष्कपट ,
सरल , स्नेह भरी 
वाणी पे , 
तेरी मुरली की तान पे |
नत मस्तक हूँ 
अपने राम के श्री चरणों में !
उन्होंने जो दिया हैं ,
मुझे कान्हा !
तेरा ये भक्ति संसार
ओ कान्हा , 
केसे कहू ?
केसे समझाऊ ?
तुझपे में बलिहारी जाऊ
मेरे कन्हाई !

अनुभूति


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