बुधवार, 1 जून 2011

तेरे कदमो की इबादत में ,

मेरे राम!
मेरी आत्मा ! 
मेरे प्रभु !
न जाने कितनी शिकायते करती हूँ 
तेरे कदमो की इबादत में ,
ढलते -ढलते ये अश्क 
आप के कदमो को पखार दे ,
मेरे लिए , 
तेरी आत्मा को वेदना देने की माफ़ी ये ही हैं|
 ये जीवन सजा हैं या दुआ नहीं मालुम ,
मेरी आत्मा को तेरी आत्मा की पनाह ही काफी हैं ,
इस जिन्दगी  को जीने के लिए |

अनुभूति

कोई टिप्पणी नहीं:

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................