मेरे राम!
मेरी आत्मा !
मेरे प्रभु !
न जाने कितनी शिकायते करती हूँ
तेरे कदमो की इबादत में ,
ढलते -ढलते ये अश्क
आप के कदमो को पखार दे ,
मेरे लिए ,
तेरी आत्मा को वेदना देने की माफ़ी ये ही हैं|
ये जीवन सजा हैं या दुआ नहीं मालुम ,
मेरी आत्मा को तेरी आत्मा की पनाह ही काफी हैं ,
इस जिन्दगी को जीने के लिए |
अनुभूति
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