इस संसार से परे,
जिस दुनिया में बसे हो
मेरे श्रीहरी !
मेरे ईश्वरतुझे पुकारती हैं,
मेरी विदीर्ण आत्मा ,
कँहा हैं प्रभु !अब तो सुन ,
कभी तो इस धरती पे आके भी देख
में पुकार सकती हूँ तुम्हे केवल ,
नहीं बैठ सकती तेरी साधना में ,
नहीं कर सकती कोई आरधना.
येआत्मा
में नहीं चढ़ा सकी में
अपनी आत्मा का ये,
मलिन पुष्प तेरे चरणों में
कितना कुछ सहेज रखा था मेने
तेरी साधना के साथ ,
इस जीवन को तपोवन बना की थी,
मेने तेरी भक्ति
ईश्वर तुने एक ही पल में ,
मुझसे छीन लिया मेरा सब कुछ ,
मेरे राम में सीता नहीं थी ,
कभी में तो अहिल्या भी न बन सकी ,
केसे में कर सकुंगी सामना खुद का ,
किस गंगाजल से धो के कर सकुंगी
अपने को पवित्र ,
इस जनम में कभी नहीं अब |
आसुंओं से धुल जाता तो में धो भी लेती
ये नहीं धुल सकता कभी किस अमृत से भी अब .
अनुभूति
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