बुधवार, 25 मई 2011

मेरे मुरलीवाले !

मेरे कान्हा!
मेरे मुरलीवाले !
हर दर्द में सह लू ,
हर वेदना में हँस के पी जाऊं ,
पर तेरे चेहरे की कोई सिलवट,
देख न जी पाऊं |
तेरे इन अधरों पे ,
खेलती मुस्कान ही मुझे प्यारी लागे |
मेरे गिरिधर !
तेरी बंसी की धुन की में दीवानी 
पर तेरी धुन में छिपी आह मुझसे सही न जाएँ |
अपनी बंसी की धुन पे
गीत ऐसा सुनाओ मेरे गिरिधर की 
जिन्दगी  झूम उठे ,
और में तेरे कदमो की बंदगी करते-करते
तुझमे ही विलीन हो जाऊं |
उदास हैं जिन्दगी ,
जीवन का कोई राग छेड़ दो कान्हा !
जी जाएँ तुम्हारी मीरा ,
गा उठे राधा रानी ,
रुक जाएँ इन अखियन से बहते नीर 
आज मुरली की ऐसी मधुर तान छेड़ दो ,
कभी रास रचाया था ,
जो तुमने अपनी राधा संग 
आज वो फाग छेड़ दो |
अनुभूति

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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................