मेरे कान्हा!
मेरे मुरलीवाले !
हर दर्द में सह लू ,
हर वेदना में हँस के पी जाऊं ,
पर तेरे चेहरे की कोई सिलवट,
देख न जी पाऊं |
तेरे इन अधरों पे ,
खेलती मुस्कान ही मुझे प्यारी लागे |
मेरे गिरिधर !
तेरी बंसी की धुन की में दीवानी
पर तेरी धुन में छिपी आह मुझसे सही न जाएँ |
अपनी बंसी की धुन पे
गीत ऐसा सुनाओ मेरे गिरिधर की
जिन्दगी झूम उठे ,
और में तेरे कदमो की बंदगी करते-करते
तुझमे ही विलीन हो जाऊं |
उदास हैं जिन्दगी ,
जीवन का कोई राग छेड़ दो कान्हा !
जी जाएँ तुम्हारी मीरा ,
गा उठे राधा रानी ,
रुक जाएँ इन अखियन से बहते नीर
आज मुरली की ऐसी मधुर तान छेड़ दो ,
कभी रास रचाया था ,
जो तुमने अपनी राधा संग
आज वो फाग छेड़ दो |
अनुभूति
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