रविवार, 29 मई 2011

कर रही आत्मा मेरी वीदिरण पुकार


मेरे कोस्तुभ धारी !
मेरे कान्हा !
कर रही आत्मा मेरी करुण पुकार
अब नहीं सहा जाता ,
चले आओ मेरे प्रभु !
बस एक बार
इस आत्मा की सुखी धरती पे
छा जाओ बन के घटा
बरस जाओ इस प्यासी आत्मा पे एक बार |
सुन लो ।
एक बार मेरी ये करुण पुकार !
अनुभूति

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निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................