रविवार, 1 मई 2011

तूफ़ान के बाद की ख़ामोशी

तूफ़ान के बाद की ख़ामोशी 
ज्यादा तबाही दिखाती हैं 
एक खामोश ,सरल सी,
दिखने वाली लहर भी तूफ़ान उठाती हैं |
शांत दरिया की वो खुबसूरत मौज 
जो कभी साहिलों के गीत  गाती थी 
आज तबाही का ये आलम दिखाती हैं 
तबाही के बाद अब कुछ नहीं बचा ,
खंडहर हो गए बुत और इंसान 
सब कुछ खाली हैं दिलो की तरह 
क्यों आते हैं तूफ़ान ,
कभी शांत  दरिया किनारे बैठ के सोचना
कही ये किसी लहर की बगावत तो नहीं |

अनुभूति

3 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

संजय भास्‍कर ने कहा…

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब, लाजबाब !

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................