सोमवार, 23 मई 2011

मेरे ठाकुर जी

मेरे कन्हियाँ !
बूंद -बूंद बरसे इन अखियन से
आलौकिक स्नेह तुम्हारा ,
तुमने कहा पुकारना मुझे,
जब भी आत्मा पुकारे ,
तुम सदा चले आये ,
अपने वचन निभाते ,
सदा लाज रखी,
मेरी आत्मा के अक्ष्णु विशवास की ,


मेरी वेदनाओं को पी लिया अपनी आत्मा से .
हमेशा दिया हैं मेरी आत्मा का साथ ,
मेरे प्रभु ,
इन अखियन से गिरता स्नेह नीर ,
सदा पग पखारता आप के ,


मेरे मुरलीवाले
मेरे कन्हियाँ !
मेरे बासूरी वाले !
मेरे ठाकुर जी !


आप के श्री चरणों की दासी
अनुभूति

कोई टिप्पणी नहीं:

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................