शनिवार, 14 मई 2011

एक झूठ जी के देखो

  एक झूठ जी के देखो

जीवन से शिकायत ही करती हैं जिन्दगी
नहीं मिला स्नेह  नहीं मिला अपनत्व ,
अब तो छोड़ दो ये सब 
कभी तो स्वार्थी बन सब को भुला के जी लो
बन जाओ उस दुनिया की ही तरह ,
जो कुछ पल ही सही झूठे  सपने ,
दिखा देती हैं तुम्हारी आँखों को 
कुछ देर के लिए ही सही तुम जिए तो,
सही सपनो के आंगन में
किसी ने तुम्हारे नाम किया तो सही ,
स्नेह का समन्दर
लिखे तो ख़त किसी को प्रेम भरे ,
कल्पनाओ में किया तुमने प्यार 
इस झूठ  में भी तो पल भर की ख़ुशी ही हैं न .
क्यों रोते हो ?
वो मुस्कुराते लम्हे याद करो झूठे ही थे 
पर थे तो तुम्हारे अपने न
कब तक अपने आप से लड़ते  ही रहोगे
और करते ही रहोगे शिकायत अपने भाग्य से?
लड़ते रहोगे तो थाम लेगी मौत तुम्हे करीब आकर 
और इस झूठी दुनिया का हिस्सा बन जाओगे तो 
पा जाओगे  स्नेह समन्दर |
पसंद तुम्हारी हैं या 
तो मिल जाओ इस दुनिया में
या मिट जाओ इस झूठ के साथ |

अनुभूति

कोई टिप्पणी नहीं:

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................