बुधवार, 18 मई 2011

सपनों का अमलतास



 सपनों  का अमलतास
इतनी खुबसूरत भोर नहीं देखी मैने,
नहीं किया था ,कभी ऐसा प्रकृति दर्शन
सजी हुयी थी ,खिले अमलतासो से मेरी राहें ,
लगता हैं सारे ख्वाब ,मेरी राहों में सजे पड़े हैं|
कभी झाँका ही नहीं तुमने,
इस खुबसूरत कायनात को इतनी अल सवेरे ,
भागना नहीं चाहती जिन्दगी में तुझसे ,
तेरी हरख़ुशी ,हर गम को झूम के गले लगाना चाहती हूँ में |
आज मेने बरसो बाद सच में सजा देखा हैं अमलतास
मेरे जीवन के पहले अधूरे  ख्वाब की तरह ,
उतना ही मासूम और खुबसूरत , 
हर साल ,सजता रहेगा अमलतास
और साल दर साल यूँही
अपने रक्त बिंदु की तरह ,विशवास
और गहरा किये करती रहूंगी
अपने वचन के पुरे होने का इन्तजार |
हां , एक दिन मेरे मरने से पहले तो सजेगा,
मेरे अधूरे  सपनों का अमलतास  भी ,
जोड़ दिया हैंजीवन को मेने आज से योग से भी
प्रभु तुमारी भक्ति और योग
मेरे अमलतास के सजने का शुभ संकेत हैं |


"आप के श्री चरणों में आप की अनुभूति "

1 टिप्पणी:

सहज साहित्य ने कहा…

बहुत खूबसूरत कविता और साथ में चित्र संयोजन भी ।

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................