"रघु कुल रीत सदा चली आई,
प्राण जाएँ पर वचन न जाएँ ."
मेरे राम
सत्य तो जीवन में हैं |
साकार आप से सिखा हैं राम
जो कुछ सिखा आप से मेरे राम ,
वो सदा अक्ष्णु रहेगा ,,
बन के आत्मा का विशवास .
इन कठिन तपस्या में भी ये अहसास हैं
साथ खड़े हो आप ,
बन के सदा स्नेह आशीष
जो में गिर जाऊ ,
मुझे थाम हो लोगे पग -पग
कितने कठोरता से सवारना चाहो
प्रभु मुझे निस दिन ,
में करुँगी हर तपस्या तुम्हरी भक्ति की नाथ |
मेरी शक्ति , मेरा विशवास अडिग हैं|
इस मस्तक के रक्त बिंदु की तरह |
हे जगदीश्वर!
देना निस दिन कठिन तपस्या का वरदान |
इस ज्यादा आस नहीं तेरी भक्ति में मिट जाना भी हैं मेरे लिए वरदान !
"अनुभूति "
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