हे करुणा निधे !
करुणा के सागर कभी तो,
कोई बूंद अपने दुलार की ,
मेरे नाम भी लिख !
क्या चाहता हैं प्रभु मुझसे !
केसी बंदगी ?
कन्हिया !
"तू ही तो कहता हैं,
कर्म करना ही तेरा अधिकार हैं
फल में नहीं "!
मुझे आना ही होगा जीवन के रणक्षेत्र में
सारे मन के बन्धनों को तोड़ ,
में मुर्ख उनसे बांधू स्नेह की डोर
जो साथ रह के भी घोप रहे मेरे ही दिल में खंजर |
प्रभु !
बस क्या इमानदारी की सजा ये ही हैं |
कभी तो कर दो अपने दुलार की कोई बूंद
मेरे नाम |
ये कोनसी नयी परीक्षा हैं तेरी दयानिधे !
क्या चाहता हैं प्रभु मुझसे ?
में निकली तेरे रणक्षेत्र में तो दुनिया बहुत पीछे छुट जायेगी
और इस दुनिया की भीड़ में भी बन जाउंगी
सिर्फ अपने लिए जीने वाली
स्वार्थी !
अनुभूति
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