सोमवार, 25 अप्रैल 2011

मेरे ठाकुर ,

मेरे ठाकुर ,
मेरे गिरिधर गोपाल ,
तुमसे इस पगली को हैं 
स्नेह अनंत ,अपार
दासीसमझ स्वीकार करो
मेरा ये भक्ति संसार 
तुम्हारे पग धो सकू 
,इन नेनो के अश्रु जल से
 ये मिले मुझे संसार  
तुम्हरा स्नेह इस मीरा की निधि हैं 
न दूसरी कोई जीवन की गति हैं |
तुम्हारी आत्मा के काबिल कँहा ये मेरा स्नेह 
ये तो चरणों की धूलि का अधिकारी हैं 
मुझे नहीं पता तेरी भक्ति में कभी,
मुझे भी विष प्याला पीना होगा
विष प्याला ,हो या कोई अग्नि परीक्षा 
में मर के भी जी जाउंगी 
जो चरण धूलि तुहारी
जो जीवन में एक बार तुम्हारी पा जाउंगी .
ये इस क्षत्राणी को मिला सोभाग्य हैं 
ठाकुरजी ,
 आप की सेवा कर ,
तन ,मन आत्मा से हर वचन निभाउंगी
अपनी दासी मान
अपने हर आदेश से ,
जीवन मेरा धन्य करो |
मेरे ठाकुर जी आप की क्षत्राणी
        अनुभूति

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