शनिवार, 30 अप्रैल 2011

लहर

स्नेह अद्भुत अनुपम तुम्हारा 
रोते -रोते भी छोड़ जाए जो
मुस्कुराहट इन लबो पे 

एक पल में घटा बन के छा जाएँ 
इस प्यासी जिन्दगी पे ,
भीग जाऊ में अपने अंतस से 
कर तुम्हारी आत्मआनंद अनुभूति 
लहर बन के हवा के साथ  बिखर जाऊ 
और छू लू तुम्हारे सपनो का आकाश
बस ये ही अनुभूति हैं तुम्हारी मुस्कुराती हुई |

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

sabdo ka anokha sangam bnaya hai aapne

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................