शनिवार, 23 अप्रैल 2011

राजीव लोचन प्रतिमा प्यारी

       प्रभु श्री राम के चरणों में समर्पित एक कविता 
    जब भीपुजती हूँ 
   राजीव लोचन,तुम्हारी  प्रतिमा प्यारी 
       उसकी  मीठी मुस्कुराहट को देख कर , 
इन ढलते अश्रुओं मेंख़ुशी छा जाती हैं
 सामने बैठ लगता हैं ,
  मेरा रोम तुम ही जानो हो ,
             बिन कहे भी इस पगली की सारी बाते जाने  हो ,
             प्रभु , तुम्हारे ह्रदय से ये अनन्य एकाकार 
        बड़ा आलौकिक लगता हैं ,
    सोचती हूँ तुमको कितना दर्द  दे देती हूँ ,
       और पगली फिर बेठी खुद ही रोती हूँ 

    और कहते नहीं मुझे कभी 
  खामोशपत्थर की मूरत बनकर 
  कभी कोई शिकायत नहीं ,
     हँस के मेरा सारा दर्द सह लेते हो

               मैं अब ना  दूंगी , कोई दुःख तुम्हे मेरे राम 
        भले ही अपने ही अंतर मन से,
           करती ही रहूँ कितने संग्राम
               तुम सा कोई इस संसार में कोई नहीं,
            जो हर बार मेरी आँखों से अश्रु ले
              मुझे अपनी इस मुस्कराहट से 
          मेरा आंचल भर देता हैं |

"अनु तुम्हारे लिए "
कहके सारे संसार की खुशियाँ,
 मेरे नाम लिख देता हैं |
इस पत्थर की मूरत से ही मुस्का के 
   कितनी सारी  अनुभूतियाँ दे  देते हो,
मेरे राम !
 तो साकार रूप कितना देगा , 
ये सोच के ही अभीभुत हूँ |

मेरी श्रद्धा, और भक्ति में साहस होगा ,
तो तुम्हे आना ही होगा अपने साक्षात् रूप में

 और करना होगा , 
अपनी चरण धूलि से 
एक उद्धार इस अहिल्या का |
 स्वीकार करना होगा ,
अपने चरणों में मेरी इस अगाध प्रीति को 
अब ये प्रार्थना नहीं ,
मेरा विद्रोह हैं , मेरी कठिन तपस्या हैं |
कहूँगी नहीं , 
सामने बैठ मुस्कुरा उंगी सदा  ,
शक्ति बन सदा खड़ी हो जाउंगी सामने तुम्हारे ,
अब कही न असह्य कहलाउंगी ,
क्योकि में नहीं दे सकुंगी,
अब कोई दर्द तुम्हे 
मेरेश्री राम

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