शुक्रवार, 18 मार्च 2011

वो महासागर

मेरा हर एक अश्क
 हर बार एक नया सवाल पैदा करता हैं|
क्या दुनिया वेसी हैं ?
सुनहरी जेसी हर तरफ दिखाई देती हैं 
या 
दो रंगों वाली ,
सुनहरे पलों वाली या ,
उसके पीछे छिपी  ,
बिलकुल काली और स्याह ,

एक  नन्ही सी बूंद
क्या समझ पायेगी इस दुनिया के महासागर को ?
नहीं इन्ही अनसुलझे सवालों में 
डूब जायेगी वो !
इस दुनियां के महासागर में ,
खो जायेगी कही ,
अपने अस्तित्व को सागर में डुबोये ,
और नन्ही - नन्ही बूंदों से
ही तो भरा होगा सागर,
और कहलायेगा 
वो महासागर|

2 टिप्‍पणियां:

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

जी
दुनियां का सृजन शून्य से हुआ
शून्य को दुनिया नही पहचानती

नीरज गोस्वामी ने कहा…

होली की ढेरों शुभकामनाएं.
नीरज

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................