सोमवार, 7 मार्च 2011

मेरे मासूम फरिश्ते


नहीं देखा मेनें तुम्हे 
ओ मेरी मासूम सी चाहत ,
बस इन्तजार कर रही हूँ तुम्हारे आने का 

मेरे मासूम फरिश्ते ! 

इन्तजार कर रही हूँ अपनी पूर्णता का 
अपने कानों में तुम्हारे गुगुनाने के एहसास का 
हां , अपने माँ होने के एहसास का 
कब आओगे तुम ?

सालों से प्रतीक्षा करते करते पथरा गयी हैं मेरी आँखे 
ओ मेरे नन्हे फ़रिश्ते 
कि तुम आओ तो में लुटा दूँ ,
अपने वात्सल्य की बयार ,
और सालो से सूखा पडा दुलार,

मेरे नन्ने फ़रिश्ते अब चले आओ 
अब चले आओ 
सुनकर अपनी माँ की करुण पुकार |

4 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Bhaavon ko jaise math ke rakh diya ho ... bahut samvedansheel .. dil mein utarti rachna hai ..

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बेहद मर्मस्पर्शी रचना ,नि:शब्द कर दिया .....

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

mamatv bharee abhivyakti hai lakshi jee,
- vijay tiwari ' kislay

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

मार्मिक बात

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................