रविवार, 6 मार्च 2011

वो कहते हैं मुझपर कविता ,

प्रिये ,
कितनी खूबसूरत हो तुम,
कितनी खूबसूरत हैं तुम्हारी मुस्कुराहटें
और
वो निस्वार्थ चाहत ,जो मेरी बंदगी करती हैं |

मेरी निगाहों से जो चाहत
तुम्हारे लबों पे मुस्कराहट बन कर बिखर जाती हैं |
क्यों छुपाना चाहती हो तुम ,
अपने ह्रदय की उस अप्रतिम मुस्कराहट को ?
केसे छुपा सकोगी तुम अपनी लहराती जुल्फों में ,
मेरी चाहत को
प्रिये ,
अपने लबों से कहो न कहो पर मुझे यकीन हैं ,
मैं मुस्कराहट बन
यूँ ही तुम्हारे लबों पे खिलता रहूँगा |

7 टिप्‍पणियां:

mridula pradhan ने कहा…

bahut pyari kavita.....

बेनामी ने कहा…

रमणीय काव्य-अभिव्यक्ति

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत एहसास

अनुभूति ने कहा…

Dhnyvad didi

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर अहसास्।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत प्यारी रचना..

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................